एक बार भारत भू पर फिर माँ दुर्गे तुम आओ
उठ देश कर त्राहि - त्राहि अब तो इसे बचाओ
उठ देश कर त्राहि - त्राहि अब तो इसे बचाओ ,
एक बार भारत भू पर फिर माँ दुर्गे तुम आओ ,
प्रलय काल की दुंदभी , गरल- सिंधु उफनाया ,
अनय वहि की लपटो में, सारा संसार समाया ,
हुआ राष्ट्र शापित , शापो पर अब तो नजर गड़ाओ ,
एक बार भारत भू पर फिर माँ दुर्गे तुम आओ ,
अभय दान दो पशुता से , जकड़ी नरिह नरता को ,
हिंसा की जिह्वा पर बैठी , चीख रही जनता को ,
छली जा रही है संस्कृति , जड़ता को मार भगाओ ,
एक बार भारत भू पर फिर माँ दुर्गे तुम आओ ,
छल प्रपंच के कीचड़ दे , यह भरी हुई धरती है ,
उधर वासना तृषण फण , फैलाये से चलती है ,
लूट रही भारत की जनता को इन अत्याचारियों से बचाओ ,
एक बार भारत भू पर फिर माँ दुर्गे तुम आओ ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें