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समाज की रचना

दोस्तों ,


               दोस्तों हम एक ऐसे समाज की रचना में जुटे हुए है
जहाँ साधनो की पवित्रता खत्म हो रही है और साध्य
ही सब कुछ हो गया है । और यह साध्य है येन- केन
प्रकारेण धन इकठ्ठा करना ।यदि वास्तव में किसी
भी समाज में धन शक्ति सर्बोत्तम उपलब्धि और
सर्बोत्तम योग्यता का मापदंड बन जाती है तो , फिर
भष्ट्राचार के खिलाफ उठाये गये मजबूत से मजबूत
और धारधार हथियार भी कुछ समय बाद भोथरे
पड़ते नजर आने लगते हैं ।

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