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अपररधियों और राजनेताओ के रिश्ते

अपराध और राजनीति




शरू - शरू में अपराधियों और राजनीतिको का रिश्ता दबा ढका था ।ये दोनों एक दूसरे की मदद चोरी छिपे किया करते थे ।दोनों पक्ष समाज के नैतिक दबाब से डरा करते थे ।लेकिन अब अपराधी , राजनेता और प्रशाशन की सांठ - गांठ मजबूत बन गयी तो अपराधियों को चुनाव में टिकट मिलने लगा ।आज अपराधी और राजनितिक घुल मिल गये है ।अब पहचान करना मुश्किल हो गया है कि कौन अपराधी है कौन राजनितिक ? जो जो सीधे सीधे अपराध कर्म में संलग्न है , जो खुलेआम अपराधियों को माथे पर बैठा रहे है वे ही राजनितिक दल और वे ही राजनीतिक नेता जब राजनितिक को अपराध कर्म से मुक्त करने कराने की बात करते है तब समूचा प्रहसन और भी अधिक भौंडा और भी अधिक जुगुप्सा पैदा करने वाल लगता है ।फिर यह मान लेना चाहिये कि यह मुल्क सिर्फ अश्लील लफ्फाजियों को सहज - ढोने को अभिशप्त है , ऐसी लफ्फजियो को न जिनके निचे किसी ठोस चिंतन की जमीन है और न जिनके ऊपर किसी वैचारिक संकल्प और कर्मठता की छत ।

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