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अलख जगाने कौन चलेगा

तो अलख जगाने कौन चलेगा 




जब सीता कंचन की चेरी बन जाय ,
तो अग्नि परीक्षा देने कौन चलेगा ।
जब सयंम भी सुबिधा के घर ब्याह रचाये ,
तो बलिदानो को गले लगाने कौन चलेगा ।
भीतर प्रश्नो का कोलाहल ,
बाहर सन्नाटा ओढ़े ।
सड़को पर आवारा नारे ,
पर घर में आभाव के कोडे ।
उपदेशो को ढ़ोते-ढ़ोते ,
टूट गये धीरज के कन्धे ,
उंगली कौन उठाये किस पर ,
सब धीरतराष्ट्र आँख के अंधे ,
जब पांडव भी दुःशासन का हाथ बटावे ,
तो कुरुक्षेत्र का कर्ज चुकाने कौन चलेगा ?
जहां क्रान्ति सुबिधा भोगी होकर ,
बातो का ब्यपार चलाये ,
इंकलाब महलो के पीछे ,
मदिरा का महफ़िल सजाये ,
वहां मौत जिन्दा रहती है ,
जिंदगी लूट जाती है ,
और बेईमान न्याय के द्वारे ,
पशु चेतना रिरयाति है ,
जब सुभाष भी अनाचार के शीश झुकाये ,
तो आज़ादी का अलख जगाने कौन चलेगा ?
कुष्ठाओ की कल्लगाह में ,
जिना भी है खुद मर जाना ,
जलता गांव देखना भी तो ,
एक तरह है आग लगाना ,
आंगन में सपनो का शव रख ,
चौराहो पर गाने वालो ,
जान बुझ कर भी जुल्मो की ,
जय -जयकार लगाने वालो ,
जब प्रताप भी मान सिंह का मान बढ़ावे ,
तो हल्दी घाटी को दुलारने कौन चलेगा ?
चुप्पी की चादर से मन की आंधी का मौसम मत रोको ,
बर्फ जवानी के बहने दे ,
कहने दो गूंगे शब्दों को ,
समझौता के नोच मुखौटा ,
आंसू को अंगार बनाओ ,
खिड़की से झांकते रहो मत ,
आहों का तूफ़ान उठाओ ,
जब झाँसी की रानी ही मेहँदी रचावे ,
तो दानवता का दर्प रौंदने कौन चलेगा ?


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