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आओ संकल्प ले भारत माता को एक नई आज़ादी दिलाने का

आओ संकल्प ले 



हमारी समाजिक समरसता , हमारी राष्ट्रीय एकता , अखण्डता , हमारी संस्कृति अस्मिता , हमारा इतिहास - भूगोल , हमारी शिक्षा , हमारी सम्प्रभुता तक बिखड़ं एवं बिखराव के संकट के चरम बिंदु तक जा पहुँचीं है । कदाचार रोजगार का सबसे बड़ा क्षेत्र बन गया है ।सम्पूर्ण राष्ट्र आराजकता , अपराध और आतंक के अमानवीय घटनाओं से त्रस्त है ।विधि व्यवस्था घोर अव्यवस्था की पर्याय बन गई है ।हमारी माताएं हमारी बहने , हमारी बहू बेटिया अपनी सुरक्षा के लिये कहि भी आश्वस्त नही है ।आज देश नारी की शक्ति मान कर आत्मतेज के रूप में धारण करता है उसी देश में वही नारी आज अपनी माँ के कोंख में भी सुरक्षित नही है ।अपनी बेटियो के साथ हो रहे घृणित कृत्यों से इस महान राष्ट्र की आत्मा कितनी आहत होती होगी यह कल्पना का विषय है । मन में यह प्रश्न उठता है कि सारी संभवनाये क्यों तिमिराच्छन्न है ? क्यों हमारी पूरी व्यवस्था अनर्थकारी आसुरी स्वार्थो को समर्पित है ? भूख- भय , भष्ट्राचार के माया जाल में फसा हमारा देश अधोगति झेलने को विवष क्यों है आखिर क्यों ? निति कहती है किसी राष्ट्र , किसी समाज , किसी संस्कृति का उत्थान या पतन उसके नेतृत्व पर निर्भर करता है यथा राजा तथा प्रजा ।आज हमारा देश सब तरह से असुरक्षित , अव्यवस्थित , अशांत और अभाव ग्रस्त है तो इसका स्पष्ट आशय है की हमारा नेतृत्व नकारा है - या तो अविवेकी अक्षम है ।क्यों की नेतृत्व की सारे अवयव अंग प्रत्यंग गुट और गिरोह बना कर राष्ट्र को लूट रहे है ।कितन विदाहक बिडम्बना है की विश्व के विशालतम के नाम से बिख्यात भारतीय गणतन्त्र में नेतृत्व के साँचे और ढांचे दोनों राष्ट्र विरोधी , समाज विरोधी और संस्कृति विरोधी है ? साँचे मारक है तो ढांचे संहारक । दल या दलों का गठबंधन स्वार्थो की साठगांठ से बनते है तो उसकी सगठनिक संरचना माफियो बाहुबलियों और अपराधियों से ।सभी गठजोड़ के तार तस्करो उग्रवादि संघटनो औए जातीय सेनाओं से जुड़े है ।फुट डालो राज करो , नरसंहार करो राज करो , जातीय आरक्षण का आग लगाओ और राज करो निति नियमो और विधान संबिधान की धज्जियां उड़ाओ और राज्य करो ।जिस निरीह जनता के वोटो से राज्य सत्ता प्राप्त करो उसी का रक्त पियो ।सभी दलो ने इसी दुर्नीति को निति के रूप में अपना लिया है
 ।सबका लक्ष्य लूटना ,चूसना,और देश को तबाह करना ही है ।भष्ट्राचार और घोटाला राजनितिक उपलब्धि बन गई है ।देश की स्वतंत्रता के लिये अपना सबकुछ लुटादेने वाले राष्ट्र नायको का स्थान नग्न सुंदरियों , और अपराधियों तथा डाकुओं और लुटेरो ने ले ली है ।समझ में नही आता की हमारी प्रथिमकताये हमारी मान्यताएं हमारे आदर्शो हमारे जीवन मूल्य इतने परीवर्तित क्यों हो गए है ?
    दो टूक शब्दों में अड़सठ बर्ष के स्वतंत्र भारत की चाहे जो उपलब्धी रही हो उसके आगे चुनौतियों का पहाड़ अभी भी भयावह दैत्य की तरह खड़ा है और इन चुनौती का सामना तब तक नही किया जा सकता तब तक किसी दूसरे स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत न हो । तो आये लचारी और बेबसी की जंजीरो में जकड़ी और भरष्ट्रचारियों के पंजो से लहूलुहान भारत माता को एक नई आज़ादी दिलाने का संकल्प ले ।

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