भारत के संसदीय लोकतन्त्र
भारत के संसदीय लोकतन्त्र के इतिहास में यह
घोर व्यक्तिवादी राजनीती का दौर है । आदर्शो
स्थापनाओं , सिद्धान्तों , वैचारिक विमर्शों , तथ्यों
और तर्को तथा सामान्य व्यवहारिक नैतिकतायाओं
का जितना माखौल इस काल की राजनीति में उड़ाया
जा रहा है वैसा इससे पहले किसी भी दौर में नही हुआ।
राष्ट्रवाद , गांधीवाद , समाजवाद , सम्प्रदायिक सदभाव
समतावादी समाज , समाजिक न्याय , गरीबो का कल्याण
देश भक्ति जैसे मुहबरे जिस तरह इस काल खण्ड में अर्थच्युत
हुये है वैसे पहले कभी नही हुये ।
घोर व्यक्तिवादी राजनीती का दौर है । आदर्शो
स्थापनाओं , सिद्धान्तों , वैचारिक विमर्शों , तथ्यों
और तर्को तथा सामान्य व्यवहारिक नैतिकतायाओं
का जितना माखौल इस काल की राजनीति में उड़ाया
जा रहा है वैसा इससे पहले किसी भी दौर में नही हुआ।
राष्ट्रवाद , गांधीवाद , समाजवाद , सम्प्रदायिक सदभाव
समतावादी समाज , समाजिक न्याय , गरीबो का कल्याण
देश भक्ति जैसे मुहबरे जिस तरह इस काल खण्ड में अर्थच्युत
हुये है वैसे पहले कभी नही हुये ।
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