हम अपने बलिदानियों को विस्मृत कर चुके
हम अपने बलिदानियों को विस्मृत कर चुके
भोगवादी और भौतिकवादी संस्कृति से घिरे हम आज तक यह विस्मृत कर चुके है कि हमारी स्वतन्त्रता जिसका सम्मपूर्ण स्वभिमान के साथ हम भरपूर आनन्द उठा रहें हैं उन्हीं बलिदानियों बीर सेनानियो के संघर्ष त्याग तथा बलिदानो की देन है जिनके ऋण से मुक्ति अनंत काल तक संभव नही है ।किन्तु अपनी स्वार्थी महत्वकांक्षाओं की मरीचिका में भटककर उन अमर शहीदों को भुला चुकने की कृतध्नता की कलंक कथा हमने मात्र कुछ दशको में ही लिख डाली है हमारे वे मुक्तिदाता जिन मूल्यों की स्थापाना बीजरूप में कर गये उन्हें पल्लवित पुष्पित करने के बाजार हम अपने स्वार्थो की बिष बेलो से घिर कर आत्म मुग्ध है ।हमारी इस संकीर्ण एवं विकृत प्रव्रती के दुषपरिणाम आने लगे है ।अपने अतीत ऋणदाताओं के पूज्यनीय त्याग और बलिदान से पूरी तरह अपरिचित और अनभीज्ञ है वर्त्तमान पीढ़ी।परिणाम स्वरूप हम अपने गौरवशाली अतीत की श्रृंखला में एक बैभवयुक्त और गर्व किये जाने योग्य वर्त्तमान के निर्माण में सफल नही हो सकें है ।देश लूट रहा है पिट रहा है आततायी , और अराजक निशाचरी शक्तियों का आतंक देश के जन जीवन के लिये स्थाई अभिशाप बनता जा रहा है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें